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मराठी

मुर्गी बाड़े से आजादी

4.7
74

उस क्षण वह मुझे कभी देवदूत लगा और कभी कसाई की तरह खूंखार! मैं धर्म संकट में फँसा गांडीव विहीन अर्जुन सा सिर झुकाए असहाय खड़ा अपने भीतर ग्लानि का अनुभव कर रहा था.

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यदु जोशी

देश की प्रमुख पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

टिप्पण्या
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  • एकूण टिप्पणी
  • author
    Jageshwar Joshi
    08 ഏപ്രില്‍ 2020
    पीछे के ब्रांड में मुर्गे बाड़े की गंध आज भी ताज़ी है।...तनु के कुत्तों के साथ भी यही परेशानी,बुरा और शांति मिली थी...अच्छी भावपूर्ण कहानी
  • author
    Indresh Uniyal
    08 ഏപ്രില്‍ 2020
    मजा आ गया जोशी जी, अति उत्तम. अपने मित्रोँ को भी भेजूंगा.
  • author
    Arpit Saxena
    09 ഏപ്രില്‍ 2020
    काफी बढ़िया लघुकथा
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    Jageshwar Joshi
    08 ഏപ്രില്‍ 2020
    पीछे के ब्रांड में मुर्गे बाड़े की गंध आज भी ताज़ी है।...तनु के कुत्तों के साथ भी यही परेशानी,बुरा और शांति मिली थी...अच्छी भावपूर्ण कहानी
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    Indresh Uniyal
    08 ഏപ്രില്‍ 2020
    मजा आ गया जोशी जी, अति उत्तम. अपने मित्रोँ को भी भेजूंगा.
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    Arpit Saxena
    09 ഏപ്രില്‍ 2020
    काफी बढ़िया लघुकथा